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Hindi Poem

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सोचा समझा 

मेरे भीतर जिंदगी जीने की चाह पहाड़ से भी बड़ी है.

धुँआ भरे फेफड़ों में उलझन की रातें, एक चाँद की कश्ती सिसककर चलती है.

सतपुड़ा के झील सा ठंडापन मुझमें भी है और उम्मीद बगल में दबाये हुए गमछे का छोर है.

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