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मेरी कविता


मेरी कविता

हा! हम सब अब तैयार है कुछ अच्छा सुनने के लिए

हर तरह के शोरो गुल के मुह बांध कर हम आये है

मन में बैठे खरगोश को जैसे हम गाजर खिलने वाले है

मगर एक तकलीफ है जब भी मै कुछ पढता हूँ

डरने की बजाय ढीट हो जाता हूँ.

पता है अकलमंद कभी कभी दिल को रिज़ाने के

लिए कविता भी सुन लेते है फिर भी

कितना चाहता हूँ कुछ हलका बादल ख़्वाब सा बुनू

पर धूल भरी काच की खिड़की साफ करने लगता हूँ

आपको क्या लगता है मेरे पास क्या है सुनाने के लिए?

मेरे पास उत्तेजित होने के लिए

कुछ भी नहीं हैं .

न मेरे पास किसी पोर्न स्टार की तस्वीरें है

न युद्ध की बाते

न राजनीती की खबरे

न किसी हेरोइन का नया अफेअर

न गद्देदार बिस्तर

न टांगे न रात

ना चांदनी

कुछ भी नहीं हैं

मेरे पास हैं कविता

उस आदमी के लिए जिसे ये पता है शब्दोंके अर्थ और उसके परे भी

बोहोत कुछ होता है.

और हर कवि रविन्द्रनाथ नहीं होता है.

मगर ,

घर लौटने के बाद वो पाव से निकले गए जुते सा महकता हैं

और कमीज की तरह आपने खोकले स्वाभिमान को

टाँगने की हिम्मत रखता है.

अभिमान की क्या औकाद जब स्वाभिमान तक आटेसा महिम गुंदा जाता है

रोटी का स्वाद वो घोड़े से भी पूछता है

जिसके मुह में लगाम है.वाही तो असली लोहा चबाता है.

मेरी कविता सौंदर्य शास्त्र समझने वालो के लिए नहीं है

नहीं मेरी कविता भाषा और व्याकरण पर बहस करने वलोके लिए है

मेरी कविता तो बस सुन्दर जीने वालों के लिए है.

जिनके दिल में अहसास काच की सुराही में पिघले लाव्हा

ठंडा होता जाना है।

पर कविता क्या हैं?

कोई पहनावा हैं ?

कुरता पैजामा हैं ?

ना भाई ना

कविता

शब्दों की अदालत में

मुज़रिम के कटघरे में खड़े बेकसूर आदमी का

हलफनामा हैं।

कविता

भाषा में आदमी होने की तमीज हैं. कविता

आपके सुनने और समझने बीच जब आप हलके से गर्दन हिलाते हो लय पर

उस लय की लहर है मेरी कविता।


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