तुम चुप रहों।
आँखों से दीप्ति पाता है प्रकाश
जिसमें रूप लेती है दुनिया,
जैसा उतरता है प्रतिबिम्ब
वैसी समझ आती है दुनिया।
इसलिए तुम कुछ मत कहना
बोलने दो उस सुगंध को जो मालती का है,
सहमे धुएं का गंध जलाये पुराने खातोंका है।
जिन्होंने रिश्तोंको बोझ माना
और प्रदर्शित किये दुःख, मेहेंगे विंटेज फ्रेम में
सहानुभूति की अपेक्षा में,
वो हर घाव को खुला रखने का आनंद उठाते रहे
सहूलियत से आंसूओंको नया रंग देतें रहें
पानी को पानीमें मिलने दो
तुम चुप रहों।
तुम्हारी हर तकलीफ, हर परेशानी का हल
अक्सर सब के पास होता है,
कितनी आसान लगती है जिंदगी जब
मिलजाती है सलह खुद के पास
जो दूसरोंको बाटने के लिएही होती है।
खुदकोही पाना सबसे मुश्किल है,
और तुम खुदा को पाने की चाह रखते हो
क्यों गाना चाहते हो वो गीत
जो पेड़ों की जुबान में गाया जाता है
कहा खो जाना चाहतें हो
ये सवाल खलता है ? या चुभता है?
रूप, स्पर्श या अनुभव
क्या देखना चाहते हो ?
आँखोंसे आँखेको देखो
तुम चुप रहों।