वजूद
क्या मेरा वजूद है
ये इसपर निर्भर होगा
के मेरी जिन्दा हरकतों
को तुम समझते नहीं हो,
क्योकि आसमानके हर तारेको
सब जानते कहा है?
कहा हर किसीका नाम तुमने रखा है।
तुम्हे कहा पता है,
के अँगड़ाईयोंसे मेरे
खुश होती है सुबह तभी धुप खिलती।
वो मै हु जो जलता रहा हूँ
और खुद को जलांए रखा है मैंने
कही भागा नहीं हूँ भूखा हु फिर भी
किसी ख्वाहिशके लिए जान मैंने दी नहीं है।
ये कविता में तुम्हारा कह देना
"जीवन सुंदर है!", ढकोसला है।
पूछो मुझसे मैंने कितनी दीवारे साफ़ की है।
जिन्होंने रोकना चाहा मुझको मैंने वो दिवारे गिराई नहीं है
मगर उनमे दरवाजे बना लिये है मैंने,
मैंने खोदने की नई तरकीबे जान ली है।
कोयलेपे खड़ा हूँ शक्ल मैली हुई है
मेरा गिरके उठना तूने देखा नहीं है।
ये खूबसूरत है आँखे, और मै ही हूँ सुन्दर
मुझसे बेहतर मेरी पहचान क्या है।
मै चला हूँ निरंतर ये मेरी मंजिले है
कही पोहोचकर तो खत्म होती है सड़के।
कोण कहता है मैंने कुछ पाया नहीं है
हर मोड़को मैंने गिनकर रखा है।
तुम्हरी चकाचोँद होर्डिंगके इश्तिहार से लगती है
शहर तुम्हीसे जगमगाना जनता है, तो होगा
मेरा अनुभव ठीक है एक दिया है
पर वो ईश्वर के चरणोमे जो लगा है।