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सपने से मुलाकात


सपने से मुलाकात

कहा निंदमे या मेरी आखोंमे, दिनमे

मै रुक जाऊ देखकर बारिश सुनहरी

या भोचका नाग की चमक देखके।

जगता हूँ तब जानता हूँ

के जानता तो हर कोई है,

सपना, सपना है सच नहीं।

फिर चाह उसकी है।

निंद के गलियारोंमे

कोण, कैसे, किससे मिले

ये किसीके हाथ नहीं।

मिलते है वो लोगभी जिन्हे मै जनता नहीं,

फिर भी “वो” सपना नींद में आता नहीं।

तुजसे मिलना होजाये

या मै तेरा होजाउ ?

इतना घुला हूँ सुबह शाममें

मै अब तक खुदसे छूटा नहीं।

मेरे आँसुओमे तेरा रंग उतरा

मेरा रंग अब भी छूटा नहीं है

जमाकर रखा है जिन्दगीमे कैसे

बनु भाफ मै, जलाऊ आग कैसे?


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