हादसे
एक बार घर की दिवारोने ये सोच लिया
और वो खुले आयतो चोकोनोपे हावी हुई.
सब बंद हो गया दरवाजे, खिड़किया, रोशनदान सबकुछ
छतसे जो दो चार किरणे आती थी वो तक भर गया.
वो दीवारे शायद मुझेही कैद करना चाहती थी
मगर दीवारे ये भुल गयी की मै तो पहलेही बहार घूम रहा था.
और कब लौटूंगा इसका कोई ठिकाना नहीं था
न मैंने किसीके लिए कोई चिठी छोड़ी थी न कोई संदेसा
चौकोंन बन कर रह गया दीवारों का सारा अन्देशा।
मगर शायद कुछ जरुरी समान छूट गया
हा.! याद आया मेरी घडी!
जो नींद पूरी हो न हो मुझे रात खत्म होते ही जगा देती थी.
और ठीक समय पर दीवारे आपने आप को ओढ़ले
उसके पहले ऑफिस भेज देती थी.
अब जब अलार्म बजेगा कोण जागेगा ?
मेरी रात और मेरी नींद के बीच कोई सुलह कर पायेगा?
हादसे आम और रोज होते है
कुछ अच्छा होना हादसा है
क्या ये हादसा है की न अब मेरे पास न दीवारें है न घडी .
काश और दो चीजे हादसों का शिकार हो
एक कभी न ख़त्म होने वाले रास्ते
और कभी न ख़त्म होने वाली भुक।