अश्व
आरंभ की आकृति कागज पर धुंधली बनादि, बादल खींच के एक अश्व क्षितिज पर घसीटता बढ़ रहा है।
जब पुरे मस्तिक्षमें दौड़ लिया तो कान के किनारे घड़ा रहा धड़कनों की तरह हांफ़ता, गोल घूमकर थकान दूर कर रहा था।
चारों ओर धूल है, आकार और शब्द, स्वर और स्वाद संवेदना के पेड़ पर खिले मुरझा गए।
बाहर बारिश हुई मैंने खिड़की खोल दी, घोड़े के नथुनों से आती गर्म सांसे ठंडी हो गई
बच्चे पानी में नाव बना कर खेल रहें थे, जैसे जैसे नाव आगे बढ़ रही थी अश्व पारदर्शी बना।
एक खिड़की दूसरी खिड़कीमें सम्मिलित हो गई श्वेत अश्व श्वेत पटल में खो गया।
ये "खयाल" इस जगत की सबसे नश्वर वस्तु कागज पर उतार ली, तुम पढ़ो तो अश्व को पुकारना
वो अब भी गोधूलि ले समय उजागर होता है वो गीली बरिशोंकी रातों में पिघलता है।