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आंखोंपर लगी झाप


तुम्हारी पलकों का काँपना क्षण क्षण में मानो तुम उतरतेहो किसी गहरी सोचमे, या तुम्हे दीखता है क्षीरसागर ? जहा तेज दौड़ कर पोहोचना, सपना है तुम्हारा।

अश्व, चमकीली आंखोंपर लगी झाप और मेरी आंखोंपर लगी झाप में क्या अंतर खोजू ? क्या तुम्हारा सपना भी मुक्ति का है? बेलगाम होने का है ? पानीदार तुम्हारी काली आँखोमे और मेरी रूखी आँखोमे वह एक ही समानता है।

सपने का सत्य कैसे करे उजागर, क्या इससे सत्य सुन्दर बनजायेगा ? और क्या फिर उस सत्य से प्रेम किया जा सकेगा ? समुद्र की लहरों पर दौड़ने वाले अश्व उस विराट की छबि को क्या तुम याद करते हो ? तुम्हारी पलकों का काँपना क्षण क्षण में मानो तुम उतरतेहो किसी गहरी सोचमे, या तुम्हे दीखता है क्षीरसागर ?


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