top of page

आइंस्टाइन के सिधान्तोके पहले।


अनायास कुछ घटता है, या सब भाग्य का लेखा है ये नहीं पता मगर ये समझ में आता है, हमारा चुनाव एक सांकेतिक भ्रम है। हम न व्यक्ति चुनते है ना स्थितियां, ना समय। निर्णय का नतीजोंसे वैसे सीधा संबंध दिखाई देता है, हमे लगता है, "वो" हमारा सही विकल्प था। क्या हर बार हमभी किसी और का चुनाव नहीं होते ?

उत्तरदाइत्व किसी और को सौपंने से पहले क्या आप वाकई में आपने कर्तव्य निभा चुके होते है? मेरा कारक या कारण होना कोन निश्चित करता है ? सिद्धांतवादी होना या असमंजसमें जीना, सही क्या होता है?

पकाहुआ सेब जब पेड़ से गिरता है, किसका कितना बल वहा लगा होता है?

संयोग से दुर्घटना, दुर्घटनासे संयोग

इनकी कड़िया है, जो दूरसे जंजीर दिखाई पड़ती है। जिंदगीके कर्म फैले हुए अजगर की चमकीली खाल की अचूक नक्काशी है।

मुझे लगता है, हम वर्तमान का तथ्य सहसा महसूस तो कर लेते है, और अनभिज्ञ होकर रहते है, जैसे हमे पताही हो सत्य अपने आप पता चल जायेगा। हम बस बचाव की कोशिश करते है, खुदसे और औरोंके आरोपोंसे।

अवजार या हथियार का फर्क अविष्कार और आक्रमण के बिच की वो दुविधा होती है, जो आत्मरक्षा और आत्मबल के जाँघोमे घिसती रहती है।

रक्तपात या संहार के बाद अगर, मगर, किन्तु, परन्तु ही बचते है।


Featured Posts
Check back soon
Once posts are published, you’ll see them here.
Recent Posts
Archive
Search By Tags
No tags yet.
Follow Us
  • Facebook Basic Square
  • Twitter Basic Square
  • Google+ Basic Square
bottom of page