कुछ भी नहीं।
अस्थियोंके झूमर में कितने लटके है चमकीले पथ्थर? चिराग- चिंगारी के इंतजार में जल रहा हो जैसे।
“जरा” तुम्हारे बाण खत्म नहीं होंगे?, क्या यही वचन दिया कृष्णने ? और स्मृतियाँ बहते पानीकी तरह जख्म भर जाने पर महसूस नहीं होती।
रक्त से पेशियों में वेदना के गीत किसने सुने है ? कलाई कान पर रख सुई के खिसकनेकी आहट कोण गाता है?
नींद, दो सपनोंके बिच के अंतराल में आया हुआ खयाल और गंगा के उगम पर बर्फ से आती आवाज कुछ ढह जाने की
अमूर्त है ये , बोलना, सोचना, कहना, लिखना, यहां तक के इसे समझना अमूर्त है , ये अर्थहीनता प्रामाणिक है, कोण किन वजहोंसे मतलब खोज रहा है ?