कारण
मेरे होने का प्रमाण मेरी परछाई है। अपनेही छाव के उस लचीले आकर का विस्तार सूरज की दिशापर निर्भर होता है। मगर "मेरे" आकुंचन और प्रसरण का कारन मै किसी और के कंधेपर डालना चाहता हूँ। मेरे कांधेपर मेरेही अपराध भाव का बोजा है। पता नहीं ग्रहण है ये या भीतर का सूरज भीतर के अंतराल में खो चूका है।