पूर्ण विराम
जब हमारे अस्ति की नियति पूर्ण होगी, ढलना साँझ नहीं, रात पूरी होगी।
बिखरे हुए कण कांच के बिखरनेसे पहले क्या थे ? आकर के परिचय की कहानी बिलकुल अनजानी होगी।
बर्फ होना बादल का और झरनेकी कहानी का रिश्ता तो पता होता है, मगर ये किस्सा भी "पानीका" होता है ! खून का न जाने क्या होता है।
चिंगारी के कणो में हसीं और राख में इत्र की तलाश, खत्म क्या होगा ? उसमे "मै"बचा कितना ?
ये डर है या लुटाने को तैयार हो सब कुछ बहाने है तो बसेरा है , खुदा भी है , खुदाई भी है।