top of page

पूर्ण विराम


जब हमारे अस्ति की नियति पूर्ण होगी, ढलना साँझ नहीं, रात पूरी होगी।

बिखरे हुए कण कांच के बिखरनेसे पहले क्या थे ? आकर के परिचय की कहानी बिलकुल अनजानी होगी।

बर्फ होना बादल का और झरनेकी कहानी का रिश्ता तो पता होता है, मगर ये किस्सा भी "पानीका" होता है ! खून का न जाने क्या होता है।

चिंगारी के कणो में हसीं और राख में इत्र की तलाश, खत्म क्या होगा ? उसमे "मै"बचा कितना ?

ये डर है या लुटाने को तैयार हो सब कुछ बहाने है तो बसेरा है , खुदा भी है , खुदाई भी है।


Featured Posts
Check back soon
Once posts are published, you’ll see them here.
Recent Posts
Archive
Search By Tags
No tags yet.
Follow Us
  • Facebook Basic Square
  • Twitter Basic Square
  • Google+ Basic Square
bottom of page