प्रोफेशनल
संवेदना रोज के मृत्यु से मर जाती है देह व्यापार भी चिता की लकड़ी के कारोबार सा लालची हो जाता है। त्वचा के खाल की कीमत हर कोई जान लेता है।
जिहादी हो या सैनिक हो,आखिर मौते आँकड़ोंसे ही तो गिनी जाती है।
भिक के ठेके चौंक से मंदिरों तक बिकते है। और बीमार बच्चे मेहेंगे किरयेपे मिलते है।
भरी दोपहरी में गोद का बच्चा मरा है, या सोया है इसका अंदाजा हाथ फैलाने वाले के पास "भूके पेट" के तर्क सा होता है।
जीर्णोद्धार में ढांचे बदले जाते है, मुर्तिया भगवान तब बनती है जब उनपर नगीने चढ़ाये जातें है।