top of page

बारिश नहीं रुकी।


बारिश नहीं रुकी।

कल की रात जब बारिश बढ़ती रही उस आवाज में मैंने बस सुना था पानी का गिरना।

वो न चीख थी, न ख़ामोशी एक अजीब सपना था अधांतर की स्थितिसे अपने वजूद को पाने का जूनून था।

रेखाए कहु या धाराएं जो सीधी जमीन तक पोहोच रही थी समर्पण का ये कैसा भाव भरा है, ना कोई आस रुके रहनेकी।

बारिश में नाद था, वो टीले, पोखर, नालों में छत पर पेड़ोंपर बस बरसती ही जा रहा थी, वो मीरा थी या चातक की प्यास बुझाने आयी थी।

मेरे अर्ध बंद कमरे में जब खिड़कियोके पर्दे गीले होने लगे और पायदान पर पैर फिसलने लगे, तो भाषा की आवाज जुबान पर टपक रही थी।

जब मेरे खयाल की खिड़की का काच बारिश “पानी” कर रही थी टेबल लैम्प की रौशनी में मेरी परछाई और घडी की टिक टिक एक दूसरे में घुल रही थी।

क्रोध या प्रेम, सय्यम कहु या धर्य, जो भी था, कीचड़ इसी बातका था बाढ़ के साथ बह आया था मलबा टेबल निचे भर सा गया था, निश्चित था वो डर था, जो मर चूका था वो मै था।


Featured Posts
Check back soon
Once posts are published, you’ll see them here.
Recent Posts
Archive
Search By Tags
No tags yet.
Follow Us
  • Facebook Basic Square
  • Twitter Basic Square
  • Google+ Basic Square
bottom of page