लंगोट और ब्रम्हांड
कोण था वो जो आपने आस्तित्व की खोज में निकला ? जिसने पहले अपने होने पर प्रश्न उठाये और फिर आस्तित्व वर प्रश्न उठाये। आपने आध्यात्मिक होने का उसे कितना अहंकार था।
आस्तित्व का निर्माण होना, या उसका चिरंतन सत्य, ब्रम्हांड के "दस" आयाम वो गिनकर बोला। विज्ञान सिद्ध करने में लग गया। जानकारी बटोरनेवाले ने नोट कर लिया।
दाढ़ी बढ़ाये सतगुरु आध्यात्मिक चर्चामें आस्तित्व की बाते करते रहे है। बने बनाये पश्न, बने बनाये उत्तर, लंगोट और ब्रम्हांड का समंध मुझे कभी समझ नहीं आया था।
विलोम ही खिलते रहे अर्थ बिखरते रहे क्षणिक और शाश्वत, भौतिक और आध्यात्मिक, गुप्त और प्रगट
पहला आयाम - सीधी लकीर जिनपर कई शब्दिक आयाम लटकेंगे। मेरे और उनके बिच किसीने खींची है?
स्टेशन पर उतरा, स्काई वॉक से निचे मैने देखा लोग कतरोंमे फुटपाथ पर सोये है सब गहरी नीदमें है, जो सुबह की गर्मीसे टूटी नहीं। यही वो लोग है जिन्होंने शान्तिकी खोजमे शांति खोई नहीं।
एक युवक को ध्यानसे देखा, एक हाथ लंगोट में था और एक हाथ में खानेका डिब्बा कसकर पकड़ा था। मै इसलिए भी उसे देखता रहा क्योके उसका चेहरा शायद मेरे जैसा था या उसके जैसा था जो सत्य और आस्तित्व के अर्थ को खोजने की खोजमें था।