समाधीन
संतुष्टि पर सारे आविष्कार ख़त्म होते है, और सारे आकर्षण भी। जिज्ञासा बुझते अंगारे होकर रहती है, कोई नतीजा कोई अनुमान राखमे उगता नहीं।
जलकी भी अपनी स्मृतिया होती है. हर स्थिति के आकारका परिवर्तन ही आधिष्ठान होता है. गहरा हो या उथला, पानी रंगहीन होता है।