कुछ है !
कुछ अजीब है संभाला कबसे जहन में मेरे
देखा हुआ सा है कुछ, सोचा हुआ सा कुछ है
कुछ उतार लेती हूँ लकीरों के किनारोंसे
कुछ गा रही हूँ मै रातके सहमे लम्हे
बस बोहोत हुआ खिड़कियोंका बंद रखना
धुप बिखरे फर्श पे निखरा हुआ सा कुछ है
समुदारों पे आशियाँना बना के चला जा चूका है कोई
रेत थामे हुए भी कुछ है, सरकता हुआ भी कुछ है
एक दिया है जल रहा मंदिर की सीढ़ियोंपे
एक समाधी पे कुछ बुझ गया है धीरेसे
नहीं अक्सर अँधेरे से डरती मै फिरभी
मेरी छाव को छूता चाँद की रोशनीसा कुछ है.
ये "कुछ" क्या है खोजती रहती हूँ मै
किसी "कुछ" से कुछ जानना चाहती हु मै
झरोंको से झाकता है नहाते समय कुछ
बिखरे बिस्तर पर हर सुबह लाल धब्बे सा कुछ है