कैसे सहें बारिश, तुम ही बतादो!
कैसे सहें बारिश, तुम ही बतादो!
छतों का बोझा कन्धोपर
सीलन से भीगी दीवारें
खपरेलोंके बिच कांच लगाकर मैंने रोशनदानोसे
और रौशनी की मांग की! ये क्या लालच बुरी हुई ?
और छतको दरवाजेपर झुकाय रखा, चिमनी को
कोने से जगह बना दी ये क्या साजिश बुरी हुई ?
चिमनी से निकलते धुएं से बादलने लिया है कालापन
मगर बारिश के लिए जाने किससे लाये मीठे आंसू ?
अब तक अकेले दीवारोंने दिया था मेरा साथ
उनकी नाराजगी का कारण कैसे उन्हींसे पुछु ?
किसके लिए किन्हे कोसु ?
कोढ़ सरीखी
चितकबरी-सी
उभर रही तन पर बौछारें ।
कैसे सहें बारिश, तुम ही बतादो!
छतों का बोझा कन्धोपर
सीलन से भीगी दीवारें।