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बस मानलो अगर तो


बस मानलो अगर तो सब कुछ है वार्ना कुछ भी नही

ना अपना कोई वजूद न कोई खुदा होता है

अर्पण किया कुछभी, फीर क्या नीलाम होता है ?

अच्छी खबरोंसेभी कभी अखबारोंको दाम मिला करता है

किसी उभरी समस्या का कोई समाधान नही होता

हल जमीपरही होते है जहॉ सवालोंका नही होता

गप्पे तो बोहोत होते है हर बातपर पर बात नही होती

लम्हो के फूल बिखरते है पर शाख नही दिखती

उस वक्त जब तालाब मे पानी नही होता

उस वक्त जब तारोंमे बिजली नही होती

हमने बस सूखेपन को महसूस किया होता है

झरने ओर बिजली का पता क्या एक नही होता है।

तुम भी मान लेती हो के हम ओर तुम अलग है

ओर दूरियोंमे महोब्बतसे कुछ ज्यादा नजाकत है

खबर नयी है सुनलो ये तो मिलावटी घी का ज्यादु है

वरना जूदाई सहनेकी क्या हममे ताकत है

तुम्हे मनाने के तरीके ओर राशन की लिस्ट एक ही पन्नेपर

लिखे थे ठीक एक दूसरे के पीछे,

अंदाजा नही ये, यकीं है बनियाभी

अाजकल खुश नजर अाता है

एक तेरी नाराजगी है

ओर एक उसका दुकान है

दोनो जगह का हिसाब

हमेशा बिगड़ा रहता है

तुम कहती हो टशनमे वो तो बनिया जो नापके देता है

तो तोलने की परखदारी क्या हमारी फितरत है?

तुम मानोगे की काटा तराजू का झुकनेके लिये ही है बनता

वरना रूठनेके बहने तो हमे बचपन से अाते है।

बस मान लो अगर सब कुछ है वार्ना कुछ भी नही

ना अपना कोई वजूद न कोई खुदा होता है

अर्पण किया कुछभी, फीर क्या नीलाम होता है ?

अच्छी खबरोंसेभी कभी अखबारोंको दाम मिला करता है


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