top of page

रात


जब सारा कोलाहल शांत हो जाता है

उनकी, आपकी, मेरी बक बक खत्म हो जाती है

गाड़िया धुवेसे हाफने लगती है,

और रस्ते अपनी पीठ दबाने लगती है

राते शहर की अक्सर जागकर देखने जैसे होती है।

ये राते और जंगल की राते क्या एकसी होती है ?

ये तो शहर ही बता सकतें है जो इंसान होने की तमीज से जीता है।

जो रातोंको रात समझकर सोता है।

दंगल के बाद टूटे कुछ शीशे चमकते है

दांत दिखाकर हसते है, और कुछ कुत्तो का शोर

अचानक बंद हो जाता है, वो खम्बेंपर निशान लगाने मूतते है

आगे बढ़ जातें है। शुक्र है उन्हें अपनी नस्ल पर पूरा यकीन है, वो बस कुत्ते ही है।

एक ऊंची इमारत की खिड़की से रौशनी, वो नीली हरी है,

जरूर वो टीवी की है।

कितना खून बहा शहर में, फिरभी शराब सस्ती है।

जितने मरे सबकी तस्वीरें इतनी मुस्कुराती हुई क्यों है?

रात अक्सर सोने के लिए होती है

तुम जल्दी सो जाओ, माँ कहती है,

उन्हें मेरी आँखोमे क्या जगता दीखता है

वो कहती है इससे बिजली की खफत बढ़ती है।


Featured Posts
Check back soon
Once posts are published, you’ll see them here.
Recent Posts
Archive
Search By Tags
No tags yet.
Follow Us
  • Facebook Basic Square
  • Twitter Basic Square
  • Google+ Basic Square
bottom of page