आंखोंपर लगी झाप
तुम्हारी पलकों का काँपना क्षण क्षण में मानो तुम उतरतेहो किसी गहरी सोचमे, या तुम्हे दीखता है क्षीरसागर ? जहा तेज दौड़ कर पोहोचना, सपना...
पूर्ण विराम
जब हमारे अस्ति की नियति पूर्ण होगी, ढलना साँझ नहीं, रात पूरी होगी। बिखरे हुए कण कांच के बिखरनेसे पहले क्या थे ? आकर के परिचय की कहानी...
मरीन ड्राइव पर मौन
क्षण में विश्चिन्न होता है स्वतः "क्षण" क्षणमे जो था अभी, अभी खो जाता है। गहरी नींद में खो जाता है स्वप्न खुली आँख का, असली आँखे...
बारिश नहीं रुकी।
बारिश नहीं रुकी। कल की रात जब बारिश बढ़ती रही उस आवाज में मैंने बस सुना था पानी का गिरना। वो न चीख थी, न ख़ामोशी एक अजीब सपना था अधांतर...