प्रतीक्षा सरोवर
कई बार छत पर सोए है कई बार साफ आकाश में आगणित तारोंकी श्रृंखलाएं देखि है। एक ऐसा सरोवर अचानक उजागर होता है जो आंतरिक्ष में फैला है। ...
ग्रीष्म ऋतू की पहली कविता !
नहीं किसीका नहीं, मेरा अपना होगा छोटा सही मगर आँगन होगा मगर इमारतों की हवस सुना है पगडंडियोंतक पोहोच चुकी है. क्या सच है? कमरों में...
कुछ भी नहीं।
अस्थियोंके झूमर में कितने लटके है चमकीले पथ्थर? चिराग- चिंगारी के इंतजार में जल रहा हो जैसे। “जरा” तुम्हारे बाण खत्म नहीं होंगे?, क्या...
अश्व
आरंभ की आकृति कागज पर धुंधली बनादि, बादल खींच के एक अश्व क्षितिज पर घसीटता बढ़ रहा है। जब पुरे मस्तिक्षमें दौड़ लिया तो कान के किनारे घड़ा...
पगडंडी पर
खेतोंकी पगडंडी पर चलते चलते मैंने देखा बगुला सरोवर में उसकी परछाई और वलयोंसे टूटता बिम्ब। तर्क जब काच ही थे , आइने तथ्योंके परे ही बन...
दूसरे मृत्यु के पहले
पहले मृत्यु को टालना असंभव था वो अनायास घटित हुआ, वो हर पल घटित हो रहा है । धीरे धीरे कठिन जगहें आये फोडेसा सा उसे महसूस किया जा सकता था...
खिड़की
तुम दोबारा झाँक कर देखो ये खिड़कियां माइक्रोसॉफ्ट विंडोस जैसे नीले आसमान का चित्र नहीं रही मगर बाहर अब भी बोहोत कुछ बचा है झांकके...
शुक्रिया!
शुक्रिया! अब सवाल सवाल न रहे। हरे घास पर बुँदे रह गई कुछ रात कौन उदास यहां बैठा था ? मैंने रंगोंमें उँगलियाँ डुबाई ये मोर कहा उड़ चला था...
शब्द के आगे
जेब का इतिहास ही तो पेट का भूगोल है, ये समझना-जानना है आपको हर हाल में। भूख भी क्या चीज है. घुस्सा भी है, फ़रियाद भी मैं कहना चाहता हूँ...
मेरा घर
दो दरवाज़ों को जोड़ता एक घेरा है मेरा घर, मेरा घर, दो दरवाज़ों के बीच है उसमें किधर से भी झाँको तुम दरवाज़े से बाहर देख रहे होगे ...