द्वंष
मैंने जो अनुभव किया है, एकांतमें सबसे ज्यादा वो रुई के स्पर्श या चंपा की गंध नहीं हो सकता वो तपते रोटी की ऊब या भूक से मरोड़ की आंत नहीं...
तर्क
कितने दिनोसे तितलियाँ नहीं देखि जी रहा हूँ फिर भी क्या ये बदलाव नहीं? अपने हाथ के चाय के कप में उबला पानी टी ब्याग से रंग बदलता है, ये...
रात
जब सारा कोलाहल शांत हो जाता है उनकी, आपकी, मेरी बक बक खत्म हो जाती है गाड़िया धुवेसे हाफने लगती है, और रस्ते अपनी पीठ दबाने लगती है राते...
अस्तित्व
अस्तित्व जो रहु अकेला अक्सर सवाल करता हूँ क्या है अस्तित्व? और कोण हूँ मै ? ये जानने की जरूरत क्यों पड़ती है अकेले में ? हा ! सुना है हर...
बस मानलो अगर तो
बस मानलो अगर तो सब कुछ है वार्ना कुछ भी नही ना अपना कोई वजूद न कोई खुदा होता है अर्पण किया कुछभी, फीर क्या नीलाम होता है ? अच्छी...
इंतजार
इंतजार बादल से भी ज्यादा उतर ज्याता है हर मोसम का पता होता है, इक तेरा नही होता कब खिलेगी धूप आंगनमेओर कब सब्र खत्म होता है कब गिलहरीया...
कुछ है !
कुछ अजीब है संभाला कबसे जहन में मेरे देखा हुआ सा है कुछ, सोचा हुआ सा कुछ है कुछ उतार लेती हूँ लकीरों के किनारोंसे कुछ गा रही हूँ मै ...
एक दृश्य जो मैंने देखा था
तुम्हे खत में लिख के भेजा है बात सुबह की है , वहा जैसा सूरज और वहा जैसा आसमान यहां भी है मगर ये अलग है। खत पढ़कर तुम जवाब नहीं दे पाए भाई...
अंधेरा और काला शुन्य
मै अकेला अंधेरे में बैठा ये क्या सोचता हूँ ? सोचता हूँ, ये मौन होना क्या होता है। विचार और विवेक से दूर मन और मष्तिष्क लहू और पानी की तरह...
कैसे सहें बारिश, तुम ही बतादो!
कैसे सहें बारिश, तुम ही बतादो! छतों का बोझा कन्धोपर सीलन से भीगी दीवारें खपरेलोंके बिच कांच लगाकर मैंने रोशनदानोसे और रौशनी की मांग की!...